सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सख्त हिदायद दी कि निचली अदालतों के लिए मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए हाई कोर्ट समय सीमा तय कर रहे हैं और सिर्फ इस आधार पर जमानत देने से इनकार सही नहीं है।
अदालत ने कहा कि यह शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ है क्योंकि इस तरह की समयावधि निर्धारित करना असाधारण मामलों में ही तय किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा मुकदमों के जल्दी निपटान और जल्द सुनवाई के लिए जमानत देने से इनकार करना शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के फैसलों के खिलाफ है।
बार एंड बेंच के मुताबिक, पीठ ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ की घोषणा के बावजूद, हमने देखा है कि कई उच्च न्यायालय जमानत खारिज करते समय मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए समय तय कर रहे हैं।
ऐसा नहीं हो सकता और सिर्फ इस आधार पर जमानत से इनकार किया जाए कि मुकदमे का निपटारा शीघ्रता से किया जाएगा। मुकदमे की सुनवाई की सीमा का ऐसा निर्धारण केवल बहुत ही असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए। “
गौरतलब है कि फरवरी में न्यायमूर्ति ओका की अध्यक्षता में संविधान पीठ के फैसले में कहा गया था कि अदालतों को किसी अन्य अदालत में लंबित मामलों के लिए समयबद्ध कार्यक्रम निर्धारित करने से बचना चाहिए।
न्यायमूर्ति ओका की पीठ ने फरवरी में दोहराया था कि उच्च न्यायालय भी संवैधानिक न्यायालय हैं और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के अधीनस्थ नहीं माना जा सकता।
अगस्त में एक अन्य पीठ ने भी कहा था कि वह उच्च न्यायालयों को समयबद्ध तरीके से मामलों की सुनवाई करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।
The post जल्दी सुनवाई की शर्त पर जमानत रद्द नहीं कर सकती अदालतें; सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत… appeared first on .