पिछले दिनों पाकिस्तान की एयरलाइन का एक वीडियो काफी वायरल हुआ। इसमें पायलट कॉकपिट में जाने से पहले प्लेन की खिड़की पर कपड़े से पोछा मारता है। जैसा कि आपने कार या ट्रक ड्राइवर को गाड़ी की विंडस्क्रीन साफ करते हुए देखा होगा। इससे कई सोशल मीडिया यूजर्स ने पाकिस्तानी एयरलाइन का मजाक बनाया कि वह और उसके पायलट आजादी के इतने साल भी कितने पिछड़े हुए हैं।
यह बात काफी हद तक सही भी है कि पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर काफी पिछड़ा हुआ है। एविएशन सेक्टर भी इसका अपवाद नहीं। यही वजह है कि पाकिस्तान का सरकारी विमानन कंपनी ‘पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस’ (PIA) के कई क्रू मेंबर्स 'रहस्यमयी' तरीके से गायब हो जाते हैं। खुद PIA भी इसकी पुष्टि कर चुका है। दरअसल, कनाडा में शरण और उसके बाद नागरिकता लेना बाकी पश्चिमी देशों के मुकाबले आसान है। वहां गायब होने के बाद क्रू मेंबर्स एविएशन इंडस्ट्री में आसानी से करियर बना लते हैं। आइए जानते हैं कि पाकिस्तानी एयरलाइंस का इतिहास कितना पुराना है, इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई?
पाकिस्तान में एयरलाइंस का इतिहास
भारत और पाकिस्तान का आधिकारिक तौर पर विभाजन 14 अगस्त 1947 को हुआ। लेकिन, पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना काफी लंबे वक्त से मजहब के आधार पर अलग मुल्क की मांग कर रहे थे। उन्हें पूरा भरोसा था कि ब्रिटिश हुकूमत और भारत के आला नेताओं को उनकी मांग मानने के लिए मजबूर हो जाएंगे। लिहाजा, वह आजादी से पहले ही अपने 'नए मुल्क' के जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर जुटाने लगे थे। द्वितीय विश्व युद्ध में हवाई जहाजों ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें सैनिकों की आवाजाही और रसद साम्राज्ञी जैसी चीजें शामिल थीं। यात्रियों के आवागमन के लिए भी विमान का चलन बढ़ रहा था, क्योंकि बाकी सभी माध्यमों के मुकाबले काफी तेज थे। यही वजह थी कि जिन्ना आजादी से पहले ही पाकिस्तान के लिए एयरलाइन का बंदोबस्त करने लगे।
पाकिस्तान की पहली एयरलाइन की नींव
जिन्ना ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए दो रईस व्यापारियों मिर्जा अहमद इस्पहानी और आदमजी हाजी दाऊद से वित्तीय मदद मांगी। वे दोनों भी मजहब के आधार अलग मुल्क की मांग के हिमायती थे। इन तीनों की कोशिशों से 23 अक्टूबर 1946 को कलकत्ता (कोलकाता) में ओरिएंट एयरवेज का रजिस्ट्रेशन हुआ। यह ब्रिटिश राज में इकलौती मुस्लिम एयरलाइन थी। भारत के पास टाटा एयरलाइंस थी, जिसकी बुनियाद जेआरडी टाटा इससे करीब दो दशक पहले ही रख चुके थे। भारत को आजादी मिलने के बाद जब पाकिस्तान अलग मुल्क बना, तो तीन डगलस डीसी-3 विमानों के बेड़े का संचालन करते हुए ओरिएंट एयरवेज ने नए मुल्क में राहत अभियान शुरू किया। अगले दो साल में ओरिएंट एयरवेज ने कराची को दिल्ली, कलकत्ता और ढाका से जोड़ने वाले मार्गों पर अपने नए कॉनवेयर विमान डिप्लॉय किए। यहां तक ओरिएंट एयरलाइंस के सब ठीक था। उसकी उड़ानों की गिनती बढ़ रही थी। एयरलाइन यात्रियों के हिसाब से अच्छा खासा पैसा भी कमा रही थी।
ओरिएंट एयरवेज का बुरा दौर
1950 के दशक की शुरुआत में ओरिएंट एयरवेज को घाटा होने लगा क्योंकि ब्रिटिश ओवरसीज एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (BOAC) जैसे तगड़े प्रतिस्पर्धी मार्केट में आ गए। पाकिस्तानी सरकार ने अपनी घरेलू एयरलाइन को सब्सिडी देना शुरू कर दिया, ताकि ओरिएंट एयरवेज BOAC और बाकी एयरलाइन के साथ कंपीटिशन कर सके। पाकिस्तान सरकार ने ओरिएंट एयरवेज की नई सहायक कंपनी के लिए तीन लॉकहीड एल-1049 सुपर कांस्टेलेशन का भुगतान भी किया। यही बाद में "पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA)" बनी। उस समय पाकिस्तान लंबी दूरी की एयरलाइन उड़ाने वाला एकमात्र मुस्लिम और एशियाई देश था। 1 अक्टूबर 1953 को, पाकिस्तानी सरकार ने ओरिएंट एयरवेज का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और इसे PIA के साथ मिलाकर आज की एयरलाइन बना दी। विलय के बावजूद ओरिएंट एयरवेज कई सालों तक अपने नाम से काम करती रही।