गणेशोत्सव के करीब आते ही सूरत में मिट्टी, पीओपी और वेस्ट मटेरियल से बनी गणेश प्रतिमाओं की धूम मच गई है. खासकर पिछले 2-3 वर्षों में मिट्टी की मूर्तियों का क्रेज तेजी से बढ़ा है. इस साल, सूरत के मूर्ति विक्रेता ने कोलकाता बेसिन से मां गंगा की चिपचिपी मिट्टी मंगवाकर विशेष गणेश मूर्तियाँ बनाई हैं, जो पर्यावरण के प्रति जागरूक भक्तों के बीच बेहद पॉपुलर हो रही हैं.
100 प्रतिशत मिट्टी से बनी मूर्ति की खासियत
सूरत में 100 प्रतिशत मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं की मांग सबसे ज्यादा है. आम धारणा यह है कि मिट्टी की मूर्तियाँ जल्दी टूट जाती हैं और दरारें पड़ जाती हैं, लेकिन कोलकाता से लाई गई विशेष चिपचिपी मिट्टी से बनी ये मूर्तियाँ टिकाऊ हैं. इस विशेष मिट्टी का बंधन बहुत मजबूत होता है, जिससे मूर्ति आसानी से नहीं टूटती.
गंगा की मिट्टी से बनी मूर्तियाँ और उनकी खासियत
इस मिट्टी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सिर्फ 30 मिनट में पानी में घुल जाती है, जिससे विसर्जन के बाद पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता. पानी में घुलने के बाद इस मिट्टी से पौधे लगाए जा सकते हैं, और भगवान को चढ़ाए गए फूलों का उपयोग किया जाता है. गंगा घाट की पवित्र मिट्टी से बनी ये मूर्तियाँ भक्तों के लिए विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती हैं.
विशेष कारीगरों द्वारा तैयार की गई मूर्तियाँ
बंगाल से विशेष रूप से मंगवाए गए तीन ट्रक चिपचिपी मिट्टी से ये मूर्तियाँ बनाई गई हैं. इन मूर्तियों को 2 सांचों के माध्यम से आकार दिया जाता है और फिर अलग-अलग प्रकार से सजाया जाता है. इस साल करीब 2000 मूर्तियाँ तैयार की गई हैं, जो पूरी तरह से पर्यावरण-अनुकूल हैं. 18 इंच से छोटी सभी मूर्तियाँ केवल 30 मिनट में पानी में पूरी तरह घुल जाती हैं, जिससे पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.
ग्राहकों की प्रतिक्रिया
ग्राहक जिया आहूजा, जो पिछले तीन साल से यह मूर्ति खरीद रही हैं, का कहना है, “यह मूर्ति पूरी तरह से पीओपी से मुक्त है और हम इसे घर पर बिना किसी चिंता के रख सकते हैं. यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि हमें सूरत में रहते हुए गंगा की मिट्टी से बनी मूर्ति प्राप्त हो रही है.”
सूरत के मूर्ति विक्रेता निशित कपाड़िया ने बताया कि इस साल इको-फ्रेंडली मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ी है और इन मूर्तियों को बंगाली कारीगरों द्वारा मां दुर्गा की कृपा से तैयार किया गया है.