वामपंथी दल सीपीएम के दिग्गज नेता सीताराम येचुरी का मिधन हो गया है।
उन्होंने 72 साल की उम्र में दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 19 अगस्त को एम्स अस्पताल में भर्ती हुए थे और तब से ही लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।
पिछले दिनों उनकी सेहत में मामूली सुधार दिखा था, लेकिन फिर सांस लेने में परेशानी हुई तो स्थिति गंभीर हो गई। वह निमोनिया जैसी सीने के संक्रमण से पीड़ित थे।
एम्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम लगातार उनकी निगरानी कर रही थी, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
सीताराम येचुरी अपने पीछे पत्नी सीमा चिश्ती येचुरी और बेटी अखिला येचुरी को छोड़ गए हैं। उनके बेटे आशीष का 2021 में निधन हो गया था।
सीताराम येचुरी ने छात्र जीवन से ही राजनीति शुरू की थी और वह जेएनयू छात्र संघ का हिस्सा रहे थे। आपातकाल के दौर में जेल जाने से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।
करीब 5 दशकों के अपने राजनीतिक करियर में वह वामपंथ की धुरी रहे। उन्हें वामपंथी दलों को गठबंधन की राजनीति में लाने का भी श्रेय दिया जाता है।
यूपीए वन और यूपीए टू के दौर में उन्होंने ही वामपंथी दलों को सरकार का हिस्सा बनने के लिए राजी किया था।
उन्हें अप्रैल 2015 में सीपीएम के महासचिव के तौर पर जिम्मेदारी मिली थी। इसके अलावा 2016 में राज्यसभा में सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से सम्मानित किए गए थे।
सेकुलरिज्म, आर्थिक समानता जैसे मूल्यों के लिए सीताराम येचुरी आजीवन प्रतिबद्ध रहे। उनके शुरुआती जीवन की बात करें तो सीताराम येचुरी 12 अगस्त, 1952 को मद्रास में पैदा हुए थे।
उनका ताल्लुक एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता आंध्र प्रदेश रोडवेज में इंजीनियर के पद पर थे और मां भी एक सरकारी अधिकारी थीं। वह हैदराबाद में बड़े हुए और दसवीं कक्षा तक हैदराबाद के ऑल सेंट्स हाई स्कूल में पढ़ाई की।
इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रुख किया और उच्च शिक्षा डीयूए एवं जेएनयू से हासिल की। दिल्ली विश्वविद्यालय से येचुरी ने अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स की डिग्री ली और फिर जेएनयू से अर्थशास्त्र में ही एमए किया।
वह अर्थशास्त्र के विषय में ही पीएचडी भी करना चाहते थे, लेकिन फिर इमरजेंसी के दौरान वह आंदोलन का हिस्सा बन गए। उनकी गिरफ्तारी हुई और जेल जाना पड़ा।
यहां से उनका पढ़ाई से नाता टूट गया और वह पूरी तरह से राजनीति में ही सक्रिय हो गए। सीताराम येचुरी के कांग्रेस, आरजेडी समेत कई दलों से अच्छे रिश्ते थे। समान विचारधारा वाले दलों को साथ लाने की वह हमेशा कोशिश करते रहे।
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