चीन के प्रति झुकाव रखने वाले मोहम्मद मुइज्जू ने पिछले साल नवंबर में मालदीव के राष्ट्रपति का पद संभाला था।
पद संभालते ही उन्होंने ‘इंडिया आउट’ अभियान को तूल दे दिया, जिसके बाद से भारत और मालदीव के संबंधों में तनाव आ गया था।
उस वक्त मालदीव को लगा था कि चीन उसे हर संकट से बचा लेगा और भारत के दूर जाने की स्थिति में भी उसकेे आर्थिक हितों को नुकसान नहीं पहुंच पाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जनवरी 2024 में जब मुइज्जू के दो मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी पर टिप्पणी की तो भारत ने उसका जबर्दस्त विरोध किया और मालदीव का बहिष्कार कर दिया।
बता दें कि बड़े पैमाने पर भारतीय छुट्टियां मनाने मालदीव जाते रहे हैं लेकिन इस प्रकरण के बाद भारतीयों ने मालदीव का बहिष्कार कर दिया।
मालदीव की अर्थव्यवस्था मूलत: पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था है। भारत के मालदीव बायकॉट से वहां का पर्यटन उद्योग न सिर्फ लड़खड़ा गया बल्कि उसे बड़े पैमाने पर आर्थिक क्षति भी हुई है।
हालांकि, यह दावा किया गया कि चीन उसे मदद कर रहा है और बड़ी संख्या में चीनी मालदीव की यात्रा कर रहे हैं। इस पर मालदीव की मुइज्जू सरकार इतराने लगी लेकिन चीन का यह दांव और दावा दोनों फेल साबित हुआ।
हाल ही में मालदीव के पर्यटन उद्योग पर एक रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें दावा किया गया है कि पर्यटकों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन द्वीपीय देश का मुनाफा घट गया है।
चीन के इशारे पर बढ़े पर्यटकों की संख्या अब मालदीव के लिए नया संकट लेकर आया है।
आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले महीने के अंत तक मालदीव पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या 13 लाख को पार कर गई है और यह संख्या वार्षिक लक्ष्य से आगे निकलती दिख रही है लेकिन खजाने के मोर्चे पर मायूसी छाई हुई है।
सबसे ज्यादा संख्या में आ रहे चीनी पर्यटक लाभ नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
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