17 सितंबर से श्राद्ध शुरू हो चुके हैं. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में कौवे को भोजन कराने से पितृ प्रसन्न होते हैं. यह यमराज के प्रतीक माने जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मनुष्य योनि के बाद मृतात्मा सबसे पहले कौआ योनि में प्रवेश करती है. यही वजह है कि मृतक की पसंद का भोजन सबसे पहले कौवों को खिलाया जाता है.तभी पितृ पक्ष के दौरान कौवे का होना पितरों के आस पास होने का संकेत माना जाता है लेकिन पितृ पक्ष के दौरान एक दूसरी वजह से भी कौए को भोजन कराना चाहिए.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश कुकरेती ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा है कि शास्त्रों में पितृपक्ष के दौरान गौ माता, काले कुत्ते, चीटियां और कौवे को भोजन कराने का विधान है. क्योंकि माना जाता है कि पितृ उनके रूप में धरती पर आते हैं और कौवे यम का प्रतीक भी होता है. अगर आप पितृ पक्ष के दौरान कौवे को भोजन कराते हैं तो दोगुना लाभ मिलता है,
पितृ प्रसन्न होते हैं
एक तो पितृ प्रसन्न होते हैं, दूसरा आपको कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. पं योगेश कुकरेती ने बताया कि भादो माह में कौवे प्रसव करते हैं तो ऋषि मुनियों ने इस वक्त उनके लिए भोजन अपनी छतों पर रखने की व्यवस्था करने के लिए कहा ताकि भोजन के लिए उन्हें इधर-उधर न भटकना पड़े. इसलिए पितृ पक्ष के दौरान उन्हें भोजन कराने से दोगुना लाभ मिलता है.
विलुप्त होने की कगार पर कौवे
पक्षी प्रेमी देव रावल ने बताया कि अब शहरों से कौवे पलायन करते जा रहे हैं. शहरों में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के चलते कौओं के साथ- साथ सभी पक्षी पलायन को मजबूर हो रहे हैं. देहरादून जैसे शहरों में प्रदूषण के कारण कौए व अन्य पक्षी शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे है. इसके साथ ही इन पक्षियों के लिए शहर का वातावरण भी अनुकूल नहीं रहा है. अब शहर में इन्हें देखना दुर्लभ हो गया है.
विलुप्ति प्रजाति में शुमार
कौवे अब विलुप्ति प्रजाति में शुमार हो गए हैं. वजह यह भी है कि मांस और तैयार भोजन पर भर निर्भर होते हैं. खाद्य सामग्रियों में अब हानिकारक रसायनों और नमक-मसालों की मात्रा ज्यादा बढ़ गई है. साथ ही पेड़ों का कटान, वायु और ध्वनि प्रदूषण में स्वयं को अहसज पाते हैं इसलिए शहर से दूर जा रहें हैं.