दक्षिण-पश्चिम मानसून ने लौटने का संकेत दे दिया है। देश के पश्चिमी भाग यानी राजस्थान एवं गुजरात से मानसून लौटने का संकेत देने लगा है। इस वर्ष मानसून के दौरान बिहार की धरती सूखी की सूखी ही रह गई।मानसून के दौरान इस वर्ष राज्य में सामान्य से 28 प्रतिशत कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है।
सामान्यत: मानसून के दौरान राज्य में 938.6 मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक राज्य में 676.1 मिलीमीटर वर्षा हुई है।मानसून के दौरान वर्षा में कमी गंभीर खतरे का संकेत माना जा रहा है। राज्य के कई जिलों में इस वर्ष 50 प्रतिशत से भी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इस वर्ष सबसे कम वर्षा सारण में रिकॉर्ड की गई।
सारण में सामान्यत: 857.3 मिलीमीटर वर्षा होेनी चाहिए थी, लेकिन इस वर्ष यहां पर मात्र 375.2 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई। यानी सारण में इस वर्ष सामान्य से 56 प्रतिशत कम वर्षा रिकॉर्ड की गई।
सारण के बाद मधुबनी की स्थिति भी काफी खराब है। वहां पर इस वर्ष मानसून के दौरान 53 प्रतिशत कम वर्ष रिकॉर्ड की गई। वहां पर सामान्यत: 925.3 मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी, लेकिन इस वर्ष वहां पर 438.7 मिलीमीटर वर्षा हुई।
इस वर्ष वैशाली में सामान्य से 52 प्रतिशत कम वर्षा हुई है, वहां पर औसतन 852.2 मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी, परंतु इस वर्षा 412.5 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई।
मौसम चक्र में बदलाव का परिणाम
पटना मौसम विज्ञान केंद्र के विज्ञानी संजय कुमार का कहना है कि प्रदेश में मानसून के दौरान वर्षा में कमी मौसम चक्र में आए बदलाव का परिणाम है। न केवल राज्य के मानसून के दौरान वर्षा में कमी आ रही है, बल्कि सामान्य दिनों में भी वर्षा में कमी हो रही है।
यह प्रदेश के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। न केवल बिहार में बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं झारखंड में भी औसत वर्षा में कमी देखने काे मिल रही है। वहीं देश के पश्चिमी हिस्से में सामान्य से अधिक वर्षा होने लगी है।
राज्य में 15 जून से 30 सितंबर तक होती मानसून की वर्षा
बिहार में 15 जून से लेकर 30 सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा होती है। अब राज्य में मात्र एक सप्ताह मानसून की अवधि बची है, परंतु वर्षा में कमी 28 प्रतिशत देखी जा रही है, जिसे पूरा होने की अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है। इस वर्ष न केवल वर्षा में कमी देखी गई बल्कि इसके साथ-साथ वर्षा में काफी असंतुलन भी देखा जा रहा है।