फिल्म ओंकारा में निभाए रज्जू तिवारी और तनु वेड्स मनु में पप्पी बनें अभिनेता दीपक डोबरियाल लगातार वैरायटी किरदार निभाते आए हैं। नेटफ्लिक्स पर हाल में रिलीज हुई फिल्म सेक्टर 36 में पुलिसकर्मी के पात्र में उन्हें काफी सराहना मिली। आगामी दिनों में वह फिल्म द फैबल में नजर आएंगे।
थिएटर में काम करने से पात्रों में रच-बस जाना आसान होता है…
थिएटर की इसमें भूमिका रही है, लेकिन पात्रों को लेकर समझ मुंबई आकर बढ़ी है क्योंकि सिनेमा कर रहा हूं। थिएटर और सिनेमा की एक्टिंग प्रक्रिया बहुत अलग है। सिनेमा में काम करने के लिए करीब सात साल के लिए थिएटर की चीजों को भूलना पड़ा। थिएटर में आप समीक्षकों से ढेरों तारीफें बटोर कर आते हैं, लेकिन यहां आने पर पता चलता है कि, यह दुनिया ही कुछ और है। फिर यहां का तरीका सीखा। मुंबई से बड़ा कोई टीचर नहीं है।
आपकी प्रतिभा को देर से पहचान मिली ?
जब शुरुआत में काम नहीं मिलता था तो इसका मतलब था कि मैं उसका हकदार नहीं था। जब मिला तो उसका हकदार हूं। अगर आपको अच्छा काम मिल गया और कर नहीं पाए तो काफी निराशा होती है। मैं यह मानता हूं कि मेरा हर निर्देशक के साथ भांगड़ा हुआ है। यही मेरी उपलब्धि है। मैं इसे बरकरार रखना चाहता हूं। कई बार जब चीजें नहीं मिलतीं तो कलाकार उसे नकारात्मक तौर पर ले लेता है। फिर नाराज हो जाता है। जबकि मैं नए कलाकारों से यही कहता हूं नाराजगी मत रखना, शिकायत मत करना, बहाने मत बनाना। अपने काम को और बेहतर बनाओ। बाकी मुझे सही समय पर सर्वश्रेष्ठ चीजें मिलीं।
सेक्टर 36 में रामलीला का दृश्य है। कभी असल में रामलीला की है?
दिल्ली में हमारी कालोनी में मेरे पिता प्राम्प्टिंग किया करते थे। वहां देखा था गेटअप वगैरह। पर मैं फिल्म करने से पहले दिमाग में बसी सभी पुरानी यादों या छवि को हटाता हूं। मुझे मेरा अपना पात्र ढूंढना होता है। यहां भी वही किया। उत्तर प्रदेश में पुलिस लाइन में रामलीला होती है। उसकी झलक फिल्म में देखने को मिली होगी।
सेक्टर 36 में एक दृश्य में, असल जिंदगी में कब ऐसा होता है?
असल जिंदगी में गुस्सा बहुत सारी चीजों पर आता है पर मैं उसे पीता नहीं हूं उसे कुछ अलग रूप देता हूं। पीने का अर्थ यह है कि आप उसे झेल रहे हैं। मैं उसे हंसकर ले लेता हूं कि कुछ अलग देखने का तरीका मिल रहा है। मतलब जैसे कई बार कोई बंदा बहुत चिडचिड़ा है, आपको साथ नहीं बैठना है लेकिन साथ है।