भारत एक ऐसा देश है जिसका इतिहास, संस्कृति और कथाएं वैश्विक स्तर पर चर्चा का केंद्र बनी रहती हैं. ऐसी ही एक प्राचीन कथा है जो पांडवों की आस्था से जुड़ी हुई है. चंबल घाटी में स्थित भारेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी. यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां हजारों श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं.
डाकुओं का आतंक और श्रद्धालुओं की आस्था
एक समय ऐसा था जब चंबल घाटी कुख्यात डाकुओं के आतंक के लिए जानी जाती थी. इसके बावजूद, शिव भक्त कभी भी पूजा अर्चना से पीछे नहीं हटे. डाकुओं का आतंक भी शिव भक्तों को डरा नहीं सका और वो लगातार इस मंदिर में आते रहे. चंबल नदी के किनारे बना ये मंदिर, जमीन से 444 फीट की ऊंचाई पर बना है. यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 108 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर की बनावट द्वापर युगीन है और इसकी पंचायतन शैली की मोटी दीवारें इसकी भव्यता का बखान करती हैं.
व्यापारिक केंद्र और मंदिर का जीर्णोद्धार
मुगलकाल में जब व्यापार नदियों के जरिए होता था, तब भरेह कस्बा उत्तर भारत का प्रमुख व्यापार केंद्र था. प्रसिद्ध कहानी के मुताबिक, एक बार राजस्थान के व्यापारी मदनलाल की नाव यमुना के भंवर में फंस गई थी. उन्होंने महादेव से प्रार्थना की और नाव सुरक्षित किनारे आ गई. इसके बाद व्यापारी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया.20वीं शताब्दी में यहां से डाकुओं का पूरी तरह सफाया हो गया था. लेकिन एक समय था जब डाकू भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते थे. निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, अरविंद गुर्जर जैसे कुख्यात डाकू भी इस मंदिर में पूजा करने आते थे.
क्या कहना है इतिहासकारों का?
इस मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना भीम ने अज्ञातवास के दौरान की थी. मंदिर की बनावट और इसकी भव्यता इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल बनाती है.