गंगा के तट पर स्थित विंध्य पर्वत पर विराजमान मां विंध्यवासिनी का धाम विशेष महिमा रखता है. यहां भक्तों को मां चार अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं. इन रूपों के अनुसार भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए विन्ध्यधाम पहुंचते हैं, जहां करुणामयी मां विंध्यवासिनी के दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण हो जाता है.
आचार्य पं. अगत्स्य द्विवेदी ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि मां विंध्यवासिनी की सबसे पहली आरती भोर में तीन बजे से चार बजे तक होती है, जिसे मंगला आरती कहा जाता है. इस समय मां बाल्यावस्था में दर्शन देती हैं और आभूषणों से मुक्त रहती हैं. दर्शन से भक्तों को धर्म की प्राप्ति होती है. मंगला आरती में भाग लेने के लिए भारी संख्या में भक्त उपस्थित रहते हैं.
राजश्री आरती में दर्शन से अर्थ की प्राप्ति
अगत्स्य द्विवेदी ने बताया कि दोपहर 12 बजे से एक बजे तक की जाने वाली दूसरी आरती, जिसे राजश्री आरती कहते हैं. राजश्री आरती में मां विंध्यवासिनी अपने युवा रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं. इस आरती में उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है, जिसमें आभूषण और साज-सज्जा की जाती है. इस आरती के दर्शन से भक्तों को अर्थ की प्राप्ति होती है और धन से जुड़ी समस्याओं का समाधान होता है
प्रौढ़ावस्था में दर्शन से संतान की होगी प्राप्ति
बताया कि सायंकाल की आरती जिसे दीपदान आरती कहा जाता है. भक्तों को मां इस आरती में प्रौढ़ावस्था में दर्शन देती हैं. इस समय उनका फूलों और आभूषणों से विशेष श्रृंगार होता है. मान्यता है कि इस रूप के दर्शन से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है. इस आरती में भी भारी संख्या में भक्त शामिल होते हैं.
मोक्षदायिनी है बड़ी आरती
आचार्य ने बताया कि रात्रि 9:30 से 10:30 के बीच मां विंध्यवासिनी की सबसे आखिरी बड़ी आरती होती है. इसे मोक्षदायिनी आरती कहा जाता है. इस समय मां वृद्धावस्था में भक्तों को दर्शन देती हैं. आरती के दर्शन से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे मोक्षदायिनी कहा जाता है. मां विंध्यवासिनी के चार रूपों के दर्शन से भक्त अपने जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं, जिससे उनका जीवन पूर्ण और संतुष्ट हो जाता है.