देशभर में इन दिनों गणेश उत्सव की धूम है. उत्तराखंड में भी पिछले कुछ साल से गणेश उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. घरों से लेकर सार्वजनिक स्थानों पर बप्पा की मूर्ति स्थापित की गई हैं. आपको जगह-जगह भगवान गणेश के पंडाल दिख जाएंगे. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश उत्सव की शुरुआत हो जाती है. यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है. इस दौरान बप्पा के भक्त अपने घर गणपति की मूर्ति लाते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं. उसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का विसर्जन कर विदाई की जाती है. इस बार अनंत चतुर्दशी के 17 सितंबर को है. लेकिन कुछ लोग गणपति विसर्जन कुछ दिन पहले ही कर देते हैं. जैसे कुछ लोग 3 दिन में तो कुछ 5 दिन बाद ही बप्पा की मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं. हालांकि उत्तराखंड का एक वर्ग ऐसा भी है, जो गणपति विसर्जन को शुभ नहीं मानता है. गौरतलब है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार उत्तराखंड विघ्नहर्ता की जन्मस्थली है.
नैनीताल निवासी पंडित प्रकाश जोशी बताते हैं कि हमारी देवभूमि से गणपति महाराज की कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. देवभूमि में ऐसा ही स्थान है डोडीताल, जो अपने अप्रतिम सौंदर्य के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है. साथ ही लोगों के दुख हरने वाले विघ्नहर्ता का जन्मस्थान भी है. उनका मानना है कि भगवान गणेश जब यहां रहते हैं, तो उनका विसर्जन कैसे हो सकता है. यही वजह है कि उत्तराखंड में गणपति का विसर्जन नहीं किया जाना चाहिए.
गणेश जी की मूर्ति को न करें विसर्जन
पंडित प्रकाश जोशी आगे बताते हैं कि हमारे किसी भी धर्मशास्त्र में ऐसा नहीं लिखा गया है कि गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन किया जाए. आप अपने घर गणपति को लाते हैं तो वह घर में ही विराजमान होने चाहिए. क्योंकि गणेश जी के साथ रिद्धि और सिद्ध होते हैं. इसलिए गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन नहीं करना चाहिए.
विसर्जन के बदले करें ये काम
पंडित प्रकाश जोशी आगे बताते हैं कि गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन करने के बजाय शीतल जल से उनकी मूर्ति को स्नान करवाना चाहिए. इसका पौराणिक महत्व है और पुराणों में भी इस बात का जिक्र है. जब महर्षि वेदव्यास जी एवं गणेश जी महाभारत लिख रहे थे तो उस समय गणेश जी का मस्तिष्क कुछ गर्म हो गया था इसलिए वेदव्यास जी ने उन्हें शीतल जल में एक डुबकी लगाने को कहा था. जिसके बाद गणेश जी ने शीतल जल में डुबकी लगाई थी. उन्होंने बताया कि गणेश जी का जन्मस्थान या घर उत्तराखंड में स्थित है तो यहां गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन नहीं करना चाहिए.