मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है. इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहरें मौजूद हैं, जिनमें से एक है रानी दमयंती जिला पुरातत्व संग्रहालय. इस संग्रहालय में 11वीं और 12वीं शताब्दी की भगवान गणेश की दुर्लभ और आकर्षक प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं, जो अपने भाव भंगी और नृत्यरत मुद्राओं के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं.
गणेश प्रतिमाओं की विशेषता
संग्रहालय में कुल 8 गणेश प्रतिमाओं का प्रदर्शन किया गया है, जिनमें से प्रमुख प्रतिमाएं तेंदूखेड़ा ब्लॉक के दौनी और अलोनी ग्राम से प्राप्त हुई हैं. इनमें से एक विशेष नृत्यरत गणेश की प्रतिमा खारी देवरी नामक स्थान से मिली है, जो अपनी उत्कृष्ट कलाकारी और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित होने के कारण बेहद खास है. इन प्रतिमाओं में गणेशजी को नृत्य मुद्रा और आसन मुद्रा में दिखाया गया है, जो 11वीं से 12वीं शताब्दी की स्थापत्य और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
संग्रहालय की गणेश प्रतिमाओं का ऐतिहासिक महत्व
पुरातत्व विभाग के अधिकारी डॉ. सुरेंद्र चौरसिया ने ‘लोकल 18’ से बातचीत में बताया कि यह संग्रहालय गणेश उत्सव के समय विशेष महत्व प्राप्त करता है, क्योंकि यहां भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमाओं का संग्रह मौजूद है. यह इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में दमोह जिले की भूमि पर भगवान गणेश की पूजा होती थी. यह सभी प्रतिमाएं लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं, जो अपनी संरचनात्मक मजबूती के लिए जानी जाती हैं. बलुआ पत्थर के छोटे-छोटे कण दबाव पड़ने पर आपस में जुड़कर एक मजबूत संरचना का निर्माण करते हैं, जिससे ये प्रतिमाएं सदियों से सुरक्षित हैं.
गणेश प्रतिमाओं का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
इन प्राचीन गणेश प्रतिमाओं का दमोह जिले की धरा से प्राप्त होना यह दर्शाता है कि इस क्षेत्र में भगवान गणेश की उपासना और आस्था का गहरा संबंध रहा है. इन प्रतिमाओं के माध्यम से प्राचीन मूर्तिकारों की कलात्मक क्षमता और धार्मिक आस्था का अद्भुत मेल देखने को मिलता है, जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है.
रानी दमयंती संग्रहालय में प्रदर्शित यह गणेश प्रतिमाएं बुंदेलखंड क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और यहां आने वाले श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों के लिए यह संग्रहालय एक विशेष आकर्षण का केंद्र है.