भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश में एक नई फायरिंग रेंज स्थापित की है, जो सेना को होवित्जर और अन्य महत्वपूर्ण हथियारों का परीक्षण और अभ्यास करने में मदद कर रही है।
सेना की रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी ने बताया कि सेना को चीन के साथ उत्तरी सीमा के पास एक और फायरिंग रेंज मिलने की तैयारी है।
उन्होंने कहा, “तवांग सेक्टर में एक नई फायरिंग रेंज खोली गई है, जहां हम अपने होवित्जर तोपों का परीक्षण कर सकते हैं और उनकी क्षमताओं को जांच सकते हैं। यह पहली उच्च-ऊंचाई वाली रेंज है, और हम अन्य राज्यों में भी ऐसी और रेंज तलाशने का प्रयास कर रहे हैं।”
यह नई फायरिंग रेंज उस समय सामने आई है जब मई-जून 2020 से चीन के साथ सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है।
आर्टिलरी के आधुनिकीकरण योजनाओं पर बात करते हुए अधिकारी ने बताया कि भारतीय सेना की रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी तेजी से आधुनिक हो रही है और इसे एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “हमारी आधुनिकीकरण और क्षमता विकास योजना ‘आत्मनिर्भरता’ अभियान से जुड़ी है और ‘स्वदेशीकरण के माध्यम से आधुनिकीकरण’ के सिद्धांत पर आधारित है।”
सेना में तोपखाना मामलों के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अदोष कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए तोपखाना इकाइयों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए विभिन्न आधुनिक प्लेटफॉर्म और उपकरण खरीदे जा रहे हैं।
उन्होंने 28 सितंबर को आर्टिलरी रेजिमेंट की 198वीं वर्षगांठ से पहले संवाददाताओं से कहा, ‘‘आज, हम इतनी तेजी से आधुनिकीकरण कर रहे हैं, जितना पहले कभी नहीं किया गया और वह भी निर्धारित समय-सीमा के अंदर।’’
कुमार ने कहा कि हाइपरसोनिक मिसाइलों के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की ओर से भी विकास कार्य प्रगति पर है।
हाइपरसोनिक मिसाइल पांच मैक की गति या ध्वनि की गति से पांच गुना से अधिक गति से उड़ सकती हैं। सेना पहले ही 100 के-9 वज्र तोप प्रणाली तैनात कर चुकी है।
यह 100 के-9एस की एक और खेप खरीदने की प्रक्रिया में है। के-9 वज्र मूल रूप से रेगिस्तान में तैनाती के लिए खरीदी गई थीं, लेकिन पूर्वी लद्दाख गतिरोध के बाद सेना ने इस ऊंचाई वाले क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में हॉवित्जर तोपों को तैनात कर दिया है।
अधिकारी ने बताया कि सेना में अब 155 मिमी कैलिबर की सभी तोप प्रणालियां स्टैंडर्ड होंगी। उन्होंने कहा कि सेना में अल्ट्रा-लाइट होवित्जर (ULH), K-9 वज्र, धनुष और शारंग सहित कई 155 मिमी कैलिबर तोपें शामिल की गई हैं।
उन्होंने कहा, “ULH को उत्तरी सीमाओं पर शामिल किया गया है। ये हल्की तोपें हैं और इन्हें हेलीकॉप्टरों के माध्यम से लटकाकर ले जाया जा सकता है।
K-9 वज्र तोप प्रणाली मैकेनाइज्ड ऑपरेशंस के लिए आदर्श है। धनुष तोपें बोफोर्स तोपों का इलेक्ट्रॉनिक अपग्रेड हैं, जबकि शारंग तोप प्रणाली को 130 मिमी से 155 मिमी कैलिबर में अपग्रेड किया गया है।”
लेफ्टिनेंट जनरल ने आगे बताया कि निकट भविष्य में और अधिक K-9 वज्र, धनुष और शरंग तोप प्रणालियों को सेना में शामिल किया जाएगा।
उन्होंने यह भी बताया कि सेना अन्य 155 मिमी तोप प्रणालियों को भी शामिल करने की प्रक्रिया में है, जिसमें एडवांस टोइड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS), माउंटेड गन सिस्टम (MGS) और टोइड गन सिस्टम (TGS) शामिल हैं।
जल्द ही ATAGS का कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने की उम्मीद है, जिसे DRDO के दो भागीदारों द्वारा निर्मित किया जाएगा। अधिकारी ने कहा कि माउंटेड गन सिस्टम और टोइड गन सिस्टम के परीक्षण 2025 में शुरू होने की संभावना है।
उन्होंने बताया, “MGS के वाहन में चालक दल और गोला-बारूद होता है और इसकी ‘शूट एंड स्कूट’ क्षमता है, जबकि TGS एक हल्की और अधिक बहुमुखी तोप प्रणाली है।”
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